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गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

आलस्य निवारण हेतु मंत्र प्रयोग



जय माँ
जिन लोगो को अधिक आलस्य आता हो या सदा सुस्त रहते हो,तथा बुद्धि में सदा जड़ता का अनुभव होता हो वे इस लघु प्रयोग को करे.नित्य १०८ बार जाप करने से बुद्धि की जड़ता देह का आलस्य समाप्त हो जाता है.तथा साधक में एक नयी स्फूर्ति का संचार होता है.इस मंत्र को मंजू घोष मंत्र कहा जाता है.इस मंत्र से सम्बंधित अन्य दीर्घ प्रयोग तथा अनुष्ठान भी होते है जिससे साधक में सर्वज्ञता आती है,वो सर्वत्र विजय प्राप्त करता है तथा धन का आभाव सदा के लिये समाप्त हो जाता है.परन्तु इस विषय पर फिर कभी चर्चा होगी।अभी उपरोक्त प्रयोग करे और उर्जा प्राप्त करे।
मंजू घोष मंत्र :

अम-रम-वम-चम-लम-धीम
मंत्र एकदम सही है अतः अपनी और से कोई परिवर्तन न करे। इस मन्त्र को किसी भी माला पर कभी भी जप सकते है। कम से कम 1 माला जाप तो करे ही, आगे आपकी श्रद्धा पर निर्भर करता है।
साधको के लिए ये मन्त्र रामबाण है।
भगवती आप सभी मे नवऊर्जा का सञ्चार करे।

भगवती प्रणाम.....!!!

पारद श्रीयंत्र

जय माँ



पारद श्रीयंत्र तो अपने आप में ही भव्य और अद्वितीय माना जाता है, इसलिए कि इसका प्रभाव तुरंत और अचूक होता है, इसलिए कि जिस घर में भी पारद श्रीयंत्र होता है, उस घर में गरीबी रह ही नहीं सकती, जिस घर में पारद श्रीयंत्र स्थापित होता है, उसके घर में ॠण की समस्या संभव ही नहीं है, जिस घर में अपनी भव्यता के साथ पारद श्रीयंत्र स्थापित है, उसके घर में आठों लक्ष्मियां अपने सम्पूर्ण वेग के साथ आबद्ध रहती ही हैं।

पारद भगवान शिव का विग्रह कहलाता है, समस्त देवताओं का पुंजीभूत स्वरूप पारे को माना गया है, और लक्ष्मी ने स्वयं स्वीकार किया है, कि ‘‘पारद ही मैं हूं और मेरा ही दूसरा स्वरूप पारद है। ’’ जब पारद श्रीयंत्र को स्थापित करते हैं, तो यह अपने आप में ही एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बन सकती है, यदि हम विधि-विधान के साथ पारद श्रीयंत्र को धन त्रयोदशी के दिन अपने घर में, दुकान में, कार्यालय में या व्यापारिक प्रतिष्ठान में स्थापित करते हैं, तो यह अपने आप में श्रेष्ठता, भव्यता और पूर्णता की ही उपलब्धि है। लक्ष्मी सूक्त के अनुसार इस पारद श्रीयंत्र को अपने घर में स्थापित कर इसके दर्शन करें, और श्रद्धा के साथ इसको अपने घर में स्थापित करें, तो निश्चय ही यह आपके लिए इस वर्ष की महत्वपूर्ण घटना मानी जाएगी। श्रीयंत्र, विशेषकर पारद श्रीयंत्र के माध्यम से तो आठों प्रकार की लक्ष्मियां पूर्ण रूप से आबद्ध होकर, उसे स्थापित करने वाले व्यक्ति के घर अपना प्रभाव देती ही हैं, संतान लक्ष्मी, व्यापार लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, स्वास्थ्य लक्ष्मी, राज्य लक्ष्मी, वाहन लक्ष्मी, कीर्ति लक्ष्मी और आयु लक्ष्मी के साथ-साथ जीवन के अभाव, जीवन की दरिद्रता और जीवन के कष्ट दूर करने में इस प्रकार का श्रीयंत्र अपने आप में ही अनुकूलता और भव्यता प्रदान करता है।

‘ श्रीसूक्त ’ के अनुसार जिसके भी घर में पारद श्रीयंत्र स्थापित होता है, स्वतः ही वहां पर लक्ष्मी का स्थायी वास होता है, जिसके भी घर में पारद श्रीयंत्र होता है, अपने आप में वह व्यक्ति रोग-रहित एवं ॠण-मुक्त होकर जीवन में आनन्द एवं पूर्णता प्राप्त करने में सक्षम हो पाता है। श्रीयंत्र कई प्रकारों में मिलता है, चन्दन पर अंकित श्रीयंत्र सफेद आक पर अंकित श्रीयंत्र, ताम्र पत्र पर अंकित श्रीयंत्र, पारद निर्मित श्रीयंत्र और यदि गणना की जाए तो लगभग 108 तरीकों से श्रीयंत्र अंकित किए जाते हैं, सबका अलग-अलग महत्व है, अलग-अलग विधान है।
अतः अपने घर में पारद श्री यन्त्र स्थापित करे एवम् अटूट लक्ष्मी का आनंद प्राप्त करे।

भगवती प्रणाम.....!!!

दुः स्वप्न एवम् अनिद्रा नाश का तंत्र प्रयोग


जय माँ

मित्रो मैं आपको बुरे स्वप्न से मुक्ति का प्रयोग बता रहा हु.यह क्रिया आपको किसी भी मंगलवार से आरम्भ कर अगले मंगलवार तक करनी है.प्रातः दैनिक पूजन के समय अपने सीधे हाथ में एक निम्बू रखिये और निम्न मंत्र का १५ मिनट तक बिना किसी माला के जाप करे.
मंत्र:
"दसो दिसन का रखवाला राम भगत तू मतवाला, तुम राम जपो हम सो जाये निद्रा में राम चरण पाए ,आओ हनुमंत रक्षा करो राम नाम मन में धरो दुहाई माता अंजनी की."

इसके बाद निम्बू को उस व्यक्ति के सर पर से ७ बार वारकर दो हिस्से में काटकर घर से बहार फेक दे,जिसे बुरे सपने आते हो.

यह क्रिया ८ दिन करे समस्या का अंत हो जायेगा।जिन लोगो को अनिद्रा की समस्या है वह भी यह प्रयोग कर सकते है अवश्य लाभ होगा।

माँ सभी का कल्याण करे

भगवती प्रणाम.....!!

2016 और पारद शिवलिंग


जय माँ
मित्रो, नववर्ष आ रहा है। हम ऐसा क्या करे की पूरा वर्ष ही हम सभी के लिए आनंदमय हो।
आज का ये प्रयोग छोटा है परंतु पुरे वर्ष को सुखमय बना देगा।
2016 के हर सोमवार को पारद शिवलिंग का पहले कच्चे दूध से एवम् इसके बाद मीठे दही से भगवन अघोरेस्वर का अभिषेक करे।
आपकी राशि कोई भी हो,कोई भी दशा आदि चल रही हो आपका पूरा वर्ष इस उपाय मात्र से आनंद से परिपूर्ण हो जायेगा।
आप सभी के लिए आने वाला वर्ष सुखमय हो।
भगवती की असीम अनुकम्पा से

भगवती प्रणाम.....!!!

तंत्र एवम् माँ





तंत्र के अनुसार ब्रह्मांड की रचना माँ काली ने की. हमारे शरीर के अंदर लघु ब्रह्मांड है, जिसमे काली के दस रूप मूलाधार में विराजमान हैं. तांत्रिक मंत्र मूलतः नाद -स्वर हैं, जो ब्रह्मांड में भी मौज़ूद हैं. जब हम किसी महाविद्या का मंत्र जाप करते हैं तो ब्रह्मांड में मौज़ूद उस नाद से जुड़ जाते हैं. इसलिये कोई भी दूसरा व्यक्ति आपके लिए मंत्र पाठ कर ही नहीं सकता. उसका फल आपको कदापि नहीं मिल सकता.

जहाँ तक बलि का सवाल है, जिस जीव की आप बलि ले रहे हैं उसका सृजन भी तो माँ काली ने ही किया है, तो आपको लाभ और उसे मृत्यु को वह कैसे और क्यों पसंद करेंगी ? स्पष्ट है कि यह सब कृत्रिम रूप से आरोपित प्रक्रियाएँ हैं जो कुछ शताब्दियों से तंत्र के नाम पर जोड़ दी गयी हैं.

 शाक्त मत के दो संप्रदाय हैं-समयाचार या दक्षिणाचार, और वामाचार..हृदय में चक्र भावना के साथ पाँच प्रकार के साम्य धारण करने वाले शिव ही समय कहलाते हैं. शिव और शक्ति का सामरस्य है. समयाचार साधना में मूलाधार से सुप्त कुण्डलिनी को जगा कर अंत में सहस्रार में सदा शिव के साथ ऐक्य कराना ही साधक का मुख्य लक्ष्य होता है. कुल का अर्थ है कुण्डलिनी तथा अकुल का अर्थ है शिव. दोनों का सामरस्य कराने वाला कौल है.

 कौल मार्ग के साधक मद्य, माँस, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन नामक पंच मकारों का सेवन करते हैं. ब्रह्मरंध्र से स्रवित मधु मदिरा है, वासना रूपी पशु का वध माँस है, इडा-पिगला के बीच प्रवाहित श्वास-प्रश्वास मत्स्य है.  प्राणायाम की प्रक्रिया से इनका प्रवाह मुद्रा है तथा सहस्रार में मौज़ूद शिव से शक्ति रूप कुण्डलिनी का मिलन मैथुन है
बलि का मतलब होता है किसी का अंत। इसलिए तंत्र में बलि की महत्वता है। क्योंकि बलि की गई वस्तु वापस नही आ सकती है। त्याग की गई वस्तु को वापस अपनाया जा सकता है पर बलि देने के बाद हम उस वस्तु को पहले के सामान कभी भी अपना नही सकते
आम साधक बलि का सही भावार्थ नही समझ पाते हैं। बलि को हमेशा किसी प्राणी के अंत से ही देखा जाता है। परन्तु सही रूप में बलि तो हमें अपने अन्दर छिपे दोष और अवगुणों का देना चाहिए। वाम मार्ग में तथा तंत्र में एक सही साधक हमेशा अपने अवगुणों की ही बलि देता है। हमेशा भटके हुए साधक, जिन्हे तंत्र का पूरा ज्ञान नही है वह दुसरे जीवों की बलि दे कर समझते हैं की उन्होंने इश्वर को प्रसन्न कर दिया। पर माँ काली का कहना है की उन्हे साधक के अवगुणों की बलि चाहिए ना की मूक जीवों की।
जहाँ तक बलि का सवाल है, जिस जीव की आप बलि ले रहे हैं उसका सृजन भी तो माँ काली ने ही किया है, तो आपको लाभ और उसे मृत्यु को वह कैसे और क्यों पसंद करेंगी ?
त्यागी व्यक्ति को हमेशा यह भय रहता है की कही वह अपनी त्याग की गई वस्तु,आदत को वापस न अपना लें। इसलिए त्यागी संत या साधक पूरी तरह से निर्भय नही हो पाते हैं। परन्तु तांत्रिक साधक जब बलि दे देता है तो वह भयहीन हो जाता है। इसलिए वह बलि देने के बाद माँ के और समीप हो जाते है।
यदि एक उच्च कोटि का साधक बनना है तो बलि देने की आदत जरुरी है। बलि का मतलब यहाँ हिंसा से कभी भी नही है।
एक सफल साधक साधना में लीनं होने के लिए निम्न प्रकार की बलि देता है:

 निजी मोह
निजी वासना
लज्जा की बलि
 क्रोध की बलि

इसलिए त्याग से उत्तम बलि देना होता है। जो मनुष्य गृहस्थ आश्रम में है तथा सामान्य भक्ति करते हैं वह अपने जीवन में अगर कुछ हद तक मोह,वासना,ईष्या,और क्रोध की बलि दें तो वह इश्वर के समीप जा सकते है और उनका जीवन सफल होता है।

सर्वज्ञ भगवती



ज्योति जगत में जल रही, होती जय जयकार !
भगवती करात प्रणाम हुँ, तुझको बारम्बार !!
माता मुझपर करपा करों, नेह हृदय में तुम धरो !
संकट मेरे दूर करों, करत यही फरियाद!!
मैँ धूल मॉ तुम्हारे चरण की, भिक्षा दे अपने शरण की!
मैँ झुका तुम्हारे क़दमों पर, "माँ " !
तुझसे ही है आस !

सोमवार, 28 दिसंबर 2015

vilkshan Tantrick Paryog

जय माँ
भगवती स्वरूपा इस ब्लॉग मे आप सभी का स्वागत है !