add 1

गुरुवार, 7 जनवरी 2016

दीक्षा क्या होती है ?


अब इस विषय में लिखना अनिवार्य सा लगता है। आज कल जहाँ कुछ लोगो ने दीक्षा को एक बाजार की दुकान की तरह बना दिया है की जिसे भी चाहिए आकर ले जाओ। नही आ सकते तो अपनी फ़ोटो भेज दो,या कोई वस्त्र। इतनी कीमत दो पर भैया दीक्षा ले जाओ......
आखिर क्या बला है ये दीक्षा???? जिसके लिए लोग इतने लालायित से रहते है की कोई उन्हें दीक्षा दे दे।
कुछ समय पूर्व मैंने " तंत्र में बलि " पर एक पोस्ट लिखी थी। उसे काफी सारे लोगो ने पढ़ा और समझा। आज एक अत्यंत गूढ़ विषय पर कुछ लिखने जा रहा हु।
आशा है की आप इसे भी समझगे


दीक्षा क्या होती है ?
एक सक्षम व्यक्तित्व के द्वारा अपने अनुभवों, ज्ञान व अपनी शक्तियों का अणु रूप में अन्य सुपात्र जीवों के साथ विधिवत व सुरक्षित बांटना या हस्तांतरित करने की प्रक्रिया ही दीक्षा लेना या दीक्षा देना कहलाती है !

जब कोई व्यक्ति अपने आत्मिक/ भौतिक उन्नति अथवा अन्य किसी प्रयोजन से किसी गहन सार्थक कर्म करने के उद्देश्य से उस विषय में किसी सक्षम मार्गदर्शन व ज्ञान देने वाले योग्य व्यक्तित्व को अपने हृदय में अपने आत्मपथप्रदर्शक गुरु में रूप में धारण कर उसके सम्मुख जाकर उससे अपने आत्मोत्थान हेतु निवेदन करता है , तब गुरु उसकी पात्रता का विश्लेषण कर अनेक अनुष्ठान संपन्न कराते हुए अपनी उर्जा को अपने शिष्य के साथ बांटने का मानसिक संकल्प लेते हुए गुरु उस साधक द्वारा विशेष पश्चाताप, यज्ञादि अनुष्ठान संपन्न कराकर आवश्यकता व दीक्षानुसार मन्त्रों द्वारा अनेक द्रव्यों से अभिसिंचन करते हुए अभिषिक्त कर उसकी देह, मन व आत्मा को ग्राह्य व निर्द्वंद बनाकर दीक्षा ग्रहण करने योग्य बनाते हैं !

जिस प्रकार बीज भूमि से बाहर ओर डिम्ब गर्भ से बाहर फलीभूत नहीं हो सकता है, उसी प्रकार कोई भी मन्त्र या साधना परिपक्व हुए बिना सार्वजनिक होने पर निष्फल हो जाती हैं ! ओर इसी प्रकार दीक्षा लिए बिना की गयी साधना भी निष्फल ही होती है, यह पृथक विषय है की बिना दीक्षा के दीर्घकाल तक मन्त्र जप व यज्ञादि करने से थोड़ी सी ऊर्जा अवश्य उत्पन्न होकर आंशिक अनुभूति मात्र करा देती है, अथवा संयोगवश कुछ सकारात्मक घटित हो सकता है, किन्तु यह साधना का परिणाम नहीं होता है, साधना का परिणाम तो दीक्षा के उपरान्त ही प्राप्त होता है !

जिस व्यक्तित्व ने जो साधना स्वयं दीक्षित होकर पूर्णता से विधिवत सिद्ध कर ली हो वह व्यक्तित्व अपने गुरु से आज्ञा मिलने पर केवल उस विषय की ही दीक्षा दे सकता है , अन्य किसी ऐसे विषय की दीक्षा वह नहीं दे सकता है जो साधना उसने स्वयं विधिवत् दीक्षित होकर पूर्णता से विधिवत सिद्ध ना कर ली हो, अर्थात जो पदार्थ उसके स्वयं के पास ही नहीं है वह उस पदार्थ को किसी अन्य को कैसे दे सकता है ??
परंतु आजकल क्या हो रहा है वो सभी जानते है।
आजकल सब शिष्य बनाना चाहते है किन्तु गुरु कोई नही बनना चाहता। जबकि सत्य यही है की शिष्य बनाना आसान है पर गुरु बनना मुश्किल।
अपनी अर्जित सम्पत्ति को देना दीक्षा है।
आपको भी आपके गुरु प्राप्त हो एवम् आप भी उचित मार्ग से दीक्षा ग्रहण करे
इसी कामना के साथ.....जय माँ
अभी के लिए आज्ञा



भगवती प्रणाम.....!!!
गुरूमाई प्रणाम....!!!

2 टिप्‍पणियां:

  1. क्या भगवान शिव को गुरु मान सकते हैं और साधना प्रारंभ कर सकते हैं क्या ऐसा ठीक है श्रीमन बताने का कष्ट करें

    जवाब देंहटाएं
  2. नमस्कार महोदय मैं प्रेत साधना करना चाहता हूं अतः आप मुझे मार्गदर्शन प्रदान करें मैंने कोई भी गुरु नहीं बनाया है भगवान भूत भावन भोलेनाथ शंकर जी ही गुरु है शंकर यह मेरे इष्ट देव भी हैं कृपया आप मुझे रास न करना और सरल से सरल और जल्दी से जल्दी पूर्ण होने वाली विधि मुझे बताना आप हमें निराश ना करें क्योंकि देवी भक्त कभी किसी को निराश नहीं करते

    जवाब देंहटाएं